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आई.आई.टी(बी. एच. यू.) में आयोजित हुआ कवि सम्मेलन

वाराणसी ब्यूरो

वाराणसी। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आई. आई. टी.)में राजभाषा प्रकोष्ठ के तत्वावधान में पहली बार कवि सम्मेलन का आयोजित हुआ। पंडित मदन मोहन मालवीय महामना की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का आगाज़ किया गया। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अमित पात्रा ने सभी आमंत्रित कविगणों को शॉल पहनाकर सम्मानित किया। और कहा – IITBHU केवल तकनीकी शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य के संवर्धन का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस प्रकार के आयोजन हमारी समृद्ध साहित्यिक धरोहर को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं। इस अवसर पर उन्होंने बांग्ला गीत को हिंदी में गाकर सुनाया। ’’ऐसा सपना कभी नहीं देख पाया, धरती में आज स्वर्ग उतर कर आया। ढलता हुआ सूरज, गगन में बनाया छवि, उस प्रेरणा से मैं बन गया कवि।’’काव्य पाठ का संचालन करते हुए डा प्रशांत सिंह ने आज की वर्तमान पद्धति पर कटाक्ष करते हुए कविता सुनाई। उसके बाद कवि सम्मेलन में सबसे पहले कवि महेश चंद्र जायसवाल ने अपनी कविताओं से समां बांधा। उन्होंने भावी इंजीनियर्स के लिए कविता की पंक्तियां कहीं, ’’मेहनतों का फल मिलेगा, ये पसीना बोलता है, बस लकीरों के सहारे, भाग्य पट कब खोलता है। किस्मतों में है लिखा सब सत्य कैसे मान ले वो, तौलने को हठ नदी का, जो समुंदर तौलता है।’’ इसके बाद उन्होंने अपनी लिखी सुप्रसिद्ध कविता ’’कर्मनाशा’’ का पाठ कर सभी को भाव-विभोर कर दिया।वहीं कवि रचनाकार दान बहादुर सिंह ने युवाओं को केंद्र में रखकर कविता पाठ किया। ’’भले तुमको लगता है हारे बहुत हैं, गले लग कर देखो, प्यारे बहुत हैं, हमारे जुनून के कसीदे पढ़ोगे, सलीके से खुद को संवारे बहुत हैं, है तहजीब अपनी, जो खामोश बहुत है, जिगर में हमारे शरारे बहुत हैं।’’और डा तिष्या श्री ने प्रेम की पंक्तियों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा, ’’हार खुद पर लिखूं, जीत तुम पर लिखूं, सारी दुनिया की मैं प्रीत तुम पर लिखूं, जिसको सुनकर तुम लौट आओ सनम, चाहती हूं कोई गीत तुम पर लिखूं।’’ उन्होंने आगे गाया, ’’चाहतों को छुपाना गलत बात है, नैन हमसे चुराना गलत बात है, ख्वाब में आते हो, रूबरू क्यों नहीं, यूं किसी को सताना, गलत बात है।’’कवि रामायण धर द्विवेदी ने अपनी कविता ’’व्यर्थ पूजा श्याम की, बिन राधिका की भक्ति के, राम की पूजा अधूरी, बिन सिया अनुरक्ति के, एक दूजे बिन नहीं दोनों कभी भी पूर्ण ज्यों, शक्ति शिव के बिन नहीं है, शिव नहीं बिन शक्ति के’’ से समां बांधा।कवि चराग शर्मा ने गजल गायिकी से भाव विभोर कर दिया। ’’तुम्हें ये गम है कि अब चिटिठयां नहीं आतीं, हमारी सोचो, हमें हिचकियां नहीं आतीं। नजरें मिली तो बात नहीं कर सकूंगा मैं, दो काम एक साथ नहीं कर सकूंगा मैं।’’ ’’हमारा इश्क भी याराने की कगार पे था, जब उसने प्यार कहा तो जोर यार पे था, मैं रोज़गारे मोहब्बत में कम पगार पे था, और इतनी कम की गजल का गुजर उधार पे था, तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक है, मेरी तरह उसे भी किताबों का शौक है।’’ ’’हम आशिके गजल हैं तो मगरूर क्यों न हो, आखिर ये शौक भी तो नवाबों का शौक है।’’कवित्री साक्षी तिवारी ने गाया, ’’अपने जैसा ढूंढ रही हूं, मैं आईना ढूंढ रही हूं, आते जाते हर चेहरे में, तेरा चेहरा ढूंढ रही हूं।’’ ’’कोई उस जैसा नहीं लगता, इसलिये अपना नहीं लगता, जब कोई अच्छा लगता है, फिर कोई अच्छा नहीं लगता।’’ उन्होंने देश प्रेम पर कविता पाठ करते हुए गाया, ’’खड़े दुश्मन हैं सीमा पर, तो फिर श्रंगार लिखूं क्या, है भारत, भारती संकट में तो फिर प्यार लिखूं क्या, शहीदों की शहादत पर नहीं आंसू बहाते जो, उन्हें गद्दार न लिखूं तो सत्कार लिखूं क्या।’’ उन्होंने आगे गाया, ’’कदम जब लड़खड़ाएंगे, उन्हें चलने का दम देंगी, वो अपनी जान को अपनी जान लुटाने की कसम देंगी, मेरी मां भारती जब शीष का बलिदान मांगेगी, तब भारत की हर बेटी भगत सिंह को जन्म देगी।’’  साभार

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