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186 परि‍वारों को टूटने से बचाया महिला प्रकोष्ठ प्रभारी नीलम सिंह की समझबुझ ने

तौफ़ीक़ खान

वाराणसी।लगभग 1वर्ष के अपने कार्यकाल में शांत स्वभाव की उप निरीक्षक नीलम सिंह का बतौर महिला प्रकोष्ठ अधिकारी कार्यकाल बहुत ही सुखद साबित हो रहा है।वो अभी तक 168 परिवारों को इस वर्ष अपने समझ से टूटने से बचाई है वह भी महज कांउसलिंग के जरिए। इनके कॉउंसलिंग का ही देन है कि दाम्पत्य जीवन में हुए विवादों में नौबत तलाक तक आ पहुचने व वह किसी भी सूरत में एक-दूसरे के साथ रहने को तैयार और नाराजगी में घर छोड़कर चले जाने के बाद भी बिखरे हुए घर मे आज खुसी की किलकारी खिल रही है।

जनपद की होनहार और बेहद सांत स्वभाव की उप निरीक्षक नीलम सिंह और उनकी सहयोगी उप निरीक्षक गीता भारती व अन्य सहकर्मियों की सराहना हर कोई कर रहा।एक घटना का जिक्र

शराबी पति और पत्नी में कराया समझौता गायघाट की रहने वाली एक महिला ने प्रकोष्ठ में शिकायत की थी कि उसके पति का किसी से प्रेम सम्बन्ध है जिसके कारण वह उसे प्रताड़ित करते हैं । जब दूसरे पक्ष की बात भी सुनी गयी तो पता चला कि विवाद की जड़ महिला का बार – बार मायके जाना है। समझाने पर पति-पत्नी मिलजुलकर रहने को तैयार हो गये। रामकटोरा की रहने वाली एक महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति घर का खर्च नहीं देते। पूरा पैसा नशे में उड़ा देते हैं । प्रकोष्ठ ने महिला के पति को बुलाया और तय कराया कि वेतन का एक हिस्सा घर के खर्च के लिए पत्नी को देगा। दोनों पक्षों को समझौता कराकर उन्हें घर भेज दिया।महिला सहायता प्रकोष्ठ प्रभारी नीलम सिंह बताती हैं कि अमूमन हर रोज ही महिलाएं पारिवारिक विवादों को लेकर आती हैं। इनमें कुछ विवाद तो सीधे पति-पत्नी के बीच के होते हैं जबकि अधिकतर परिवार वालों द्वारा लगाये गये आरोप-प्रत्यारोप के चलते विकराल रूप ले चुके होते है। कुछ मामले शक या गलतफहमियों के चलते भी इस कदर बिगड़ चुके होते हैं कि परिवार बिखरने की स्थिति में होता है। नीलम सिंह बताती हैं कि शिकायत मिलने के बाद हमारा पहला प्रयास होता है कि मामले का निस्तारण आपसी सहमति से हो जाए। इसके लिए हम दोनों पक्षों को एक साथ बैठाते हैं । दोनों पक्षों की बातों को सुनने के बाद उनकी समस्या के समाधान का रास्ता उन्हें सुझाया जाता है। कांउसलिंग का यह नतीजा होता है कि अधिकतर मामलों में दोनों पक्ष सुलह-समझौते के लिए राजी हो जाते हैं और परिवार टूटने से बच जाता है। जब समझौते की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं तभी हम ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज कराते हैं।

महिला सहायता प्रकोष्ठ में इस वर्ष अब तक कुल 633 शिकायतें प्राप्त हुई। इनमें 237 मामले पहले से ही न्यायालय में विचाराधीन थे। 168 मामलों को सुलह-समझौते से सुलझा लिया गया जबकि दोनों पक्षों के राजी न होने पर 39 मामलों में मुकदमा दर्ज कराया गया। 189 ऐसे भी मामले रहे जिसमें शिकायतकर्ता शिकायत करने के बाद दोबारा नहीं आयी अथवा उसने कार्रवाई न करने की इच्छा जतायी।

महिला सहायता प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी केवल समझौता कराने तक ही सीमित नहीं है। वह समझौता करने वाली महिला के लिए ‘गार्जियन’ की भूमिका भी निभा रहा। इसके लिए प्रकोष्ठ ‘फीडबैक’ का भी नुस्खा आजमा रहा है । शिकायत करने वाली महिला को भविष्य में कोई दिक्कत न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।

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