शब-ए-मेराज मुबारक : रजब की 27वीं रात और पैगंबर मोहम्मद साहब।

भोपाल (मप्र.) रजब की 27वीं रात को पैगंबर मोहम्मद साहब ने मक्का से येरुशलम की चालीस दिन का सफर महज कुछ ही घंटों में तय कर लिया था, फिर सातों आसमानों का सफर करके अल्लाहतआला के दीदार किए। इस दिन दुनिया भर के मुलमान शब-ए-मेराज को धूमधाम से मनाते हैं।

शब-ए-मेराज भारत में 19 फरवरी रविवार को है शब-ए-मेराज को इस्लामिक महीने रजब (Rajab) की 27 तारीख को मनाया जाता है। इसे इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र महीने रमजान की शुरुआत से कुछ दिन पहले मनाया जाता है। इस्लाम में शब-ए-मेराज का ऐतिहासिक महत्व है, इस्लामिक शास्त्रों के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद साहब को इस रात जन्नत में पांच फर्ज दुआ दी गई थीं।इसके साथ ही वो अन्य नबियों से मिले और कुछ असाधारण दृश्यों को अनुभव किया। जैसा कि पहली इस्लामी तीर्थयात्रा येरूशलम में स्थित थी, पैगंबर मोहम्मद वर्तमान तीर्थ स्थल मक्का से वहां गए थे। पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम के दो महत्वपूर्ण स्थलों के बीच की दूरी को कवर किया था। मक्का और येरूशलम तक की उनकी यात्रा को ‘इसरा’ कहा जाता है।
रजब की 27वीं रात को पैगंबर मोहम्मद साहब ने मक्का से येरुशलम की चालीस दिन की यात्रा महज कुछ ही घंटों में तय कर ली थी, फिर सातों आसमानों की यात्रा करके सशरीर अल्लाहतआला के दर्शन प्राप्त किए थे। इस दिन दुनिया भर के मुलमान शब-ए-मेराज को धूमधाम से मनाते हैं।
गौरतलब है कि इस दिन को इस्लाम धर्म में बहुत मुबारक दिन बताया गया है, जिसे लेकर लोगों की अपनी मान्यताएं एवं आस्था है। शब-ए-मेराज के दिन इस्लाम धर्म के लोग रातभर अल्लाह की इबादत करते हैं और लजीज पकवानों के साथ इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। कुछ इस्लामिक विद्वान शब-ए-मेराज को ‘बिदाह’ कहते हैं, जिसका अर्थ है धर्म में नवीनता। उपमहाद्वीप के देशों में मुसलमान इसे अनिवार्य बताते हुए इस रात नमाज अदा करते हैं।